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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 05)

प्रेमम : एक युद्ध (भाग : 05)

अरुण की बाइक बहुत तेजी भागी जा रही थी, उसका दिमाग शून्य पड़ता जा रहा था, उसकी कल्पनाएं भयावह होती जा रही थीं। वह सीने में एक अजीब सी कसक महसूस कर रहा था, गला घुटता हुआ महसूस हुआ। अब तक वह हेडक्वार्टर के सामने आ चुका था। बाइक से उतरकर तेजी से भागते हुए वह जहां बच्चों को रखा गया था उस रूम में पहुँचा। मगर बच्चें उसे वहां नही मिले।

"बच्चें कहाँ हैं?" अरुण जोर से चीखा।

"उन्हें तो उनके पेरेंट्स ले गए सर!" एक हेड कॉन्स्टेबल ने बताया। "ये देखिये!" कहते हुए उसने रजिस्टर थमा दिया।

"ओह नही!" अरुण रजिस्टर में उनके क्लियर पते को देखकर घबराया। ये सभी बच्चें देहरादून के अलग अलग इलाकों से थे। हेडक्वार्टर की घड़ी में अभी दोपहर के एक बजने में दस मिनट शेष थे।

"मेरा फ़ोन कहाँ है?" वह फिर गरजा, एक कांस्टेबल ने बिना कुछ बोले फ़ोन लाकर उसके सामने टेबल पर रख दिया।

"क्या हुआ सर! आप इतने परेशान क्यों हैं?" अरुण के चेहरे पर चिलचिलाते पसीने को देख हेड कॉन्स्टेबल ने पूछा। उत्तर में अरुण बस उसे घूरता रहा।

"तुम सब अभी तुरंत जाओ और सभी बच्चों को लेकर पास की पहाड़ी के पास पहुँचो, मैं अभी वहां आता हूँ!" अरुण ने आदेशित स्वर में कहा, सभी ने बिना कुछ बोले फौरन उसके आदेश को अमल में लिया। अरुण अपने फोन में कोई नम्बर टाइप कर कॉल मिलाने लगा।

"हेलो बम स्क्वायड!" अरुण ने कॉल करते ही कहा। "मैं इंस्पेक्टर अरुण बोल रहा हूँ। अपने टीम के सबसे तेज तर्रार एलीट मेम्बर्स को यहां भेजो, बहुत जल्दी!" कहते ही अरुण ने कॉल कट कर दिया, और तेजी से बाहर निकला।

"काश! कि मेरी ये आशंका निर्मूल हो, झूठी साबित हो जाये। कोई बच्चों के अंदर एक्सप्लोसिव कैसे फीट कर सकता है। मगर मेरी आँखों ने जो देखा वह भी झूठ नही है। वही ट्रक वहाँ उस टोल तक कैसे पहुंचा??" अरुण पता नही क्या क्या अपने मन में बड़बड़ाये जा रहा था। अगले ही पल वह बाइक पर सवार हुए और नियत स्थान की ओर बढ़ चला।

■■■■■

"ये इंस्पेक्टर का बच्चा चाहता क्या है? पहले घर भिजवाने का आर्डर देता है और फिर घर से कहीं और ले जाने का! पूरा का पूरा सरफिरा है एकदम।" आदित्य, जो अब अपनी टीम के साथ मिलकर सारे बच्चों को लिए पहाड़ी के नीचे खुले मैदान में खड़ा था, ने कहा।

"उनके व्यवहार से लग रहा था कि मैटर सीरियस है सर! चेहरे पर चिंता की लकीरें देखीं है मैंने उनके!" हेड कॉन्स्टेबल ने आदित्य को समझाते हुए कहा।

"सीरियस! ऐसा कौन सा टाइम है जब वो सीरियस नही रहता।" आदित्य ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा।

सभी बच्चें स्तब्ध खड़े थे, उनकी आँखों में अजीब सा डर दिखाई दे रहा था। वे समझ नही पा रहे थे कि इतने पुलिस वाले उन्हें उनके घर से यहां लाकर क्या करना चाहते हैं।

तभी उन्हें अरुण दिखाई दिया, वह बड़ी तेजी से इन्ही की ओर आ रहा था। उतरते ही उसने बच्चों के हाथ एवं पैरों को गौर से चेक करने लगा। वैसे उसने सभी को पुलिस हेडक्वार्टर ले जाने से पहले अस्पताल लेकर गया था और चेक-अप भी कराया था। उसके बाएं हाथ की बांह पर पट्टी भी बंधी हुई थी जो उसके कपड़ो के नीचे छुप गयी थी। डॉक्टर्स ने उस सभी को नार्मल बताते हुए डिस्चार्ज किया था।

बार बार ध्यान से देखने पर भी उसे कुछ अजीब नही मिला, एक लड़का गूँ-गूँ कर रहा था, यह वही लड़का था जो कल भी इसे सब बताया था।

"क्या? तुम मुझे बताओ क्या तुम्हें कोई इंजेक्शन दिया गया था।" अरुण ने उस बच्चे से पूछा, जिसके जवाब में बच्चे ने सिर हिलाते हुए कमर के नीचे अपने पेंट की ओर इशारा करके गूँ गूँ किया। पर अरुण उसकी बात सही से न समझा कि वह उसे इशारे क्यों कर रहा था।

अब तक वहाँ बम स्क्वायड की टीम पहुंच चुकी थी,  अरुण ने उन्हें अपना लाइव लोकेशन सेंड किया हुआ था। दोनों तेजी से अरुण की ओर बढ़े। अरुण ने बच्चों की ओर इशारा किया, सभी बच्चों की बारी-बारी कई बार चेकिंग की गई मगर कुछ भी संदिग्ध न मिला। एक मेंबर ने ब्लड सैम्पल निकालकर एक छोटे से डिवाइस में रखा, यह शायद ब्लड में एक्सप्लोसिव होने की संभावना को बताता था। मगर उसमें कुछ भी दिखाई नही दिया, सभी बच्चों का ब्लड और बॉडी सब नार्मल था।

"आपने हमारा और अपना वक़्त बर्बाद किया है मिस्टर अरुण!" बम स्क्वायड के एक मेंबर ने कहा। इनके पास से ऐसा कुछ नही मिला जो आपकी आशंकाओ को सच साबित कर सके।

"थैंक गॉड!" अरुण ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद किया, तभी एक बच्चा पेट पकड़कर चीखने लगा, उसकी हरकतों से लग रहा था कि वह किसी भयंकर दर्द में है। अगले ही पल यही हालत हरेक बच्चे की हो गयी। सभी बच्चें अपने पेट पकड़कर भयंकर दर्द से चीखने लगें।  अरुण ने उन बच्चों के पास जाने की कोशिश की पर उसके एक बच्चे ने धक्का दे दिया, वह नीचे गिर पड़ा, उसके बाँह के जख्म से लहू बहने लगा। बच्चों ने सभी को खुद से दूर हटने का इशारा किया, वे खुद अपने पेट पकड़कर चीखते हुए किसी तरह पहाड़ियों की ओर भागने लगें। उनकी चीखें और अधिक बढ़ती गयी, उनकी चीखों से वह पहाड़ी कांपने लगी थीं। अगले ही पल एक बच्चे का पेट फट पड़ा, उसकी दर्द भरी चीख वातावरण में गूंज गयी। लहू, फव्वारें की तरह आसमान की ओर उछला, दो-चार पुलिसवाले और सभी बच्चे उसके खून से नहा गए। यह सिलसिला यहीं नही रुका, एक के बाद एक सभी बच्चों का पेट फटता गया, बच्चों की मासूम चीखों ने सभी के कान के पर्दे फाड़ दिए थे। दस मिनट के भीतर ही सभी बच्चों की मृत्यु पेट फटने से हो चुकी थी। अरुण आत्मग्लानि से भर गया, उसका चेहरा गुस्से से तमतमा गया था, आँखों में आँसू डबडबाने लगे थे, जिससे फूटकर एक धार उसके गालों तक पहुंच गई। वह गुस्से से उठा और बम स्क्वायड के एक मेंबर का कालर पकड़कर जमीन पर पटक दिया। सभी अरुण की इस अप्रत्याशित हरकत से हैरान थे, पहले ही अपने आँखों के सामने इतने बच्चों को तड़पकर मरते देख सभी की आँखों में बेबसी और लाचारी के आँसू थे, सभी इस अप्रत्याशित घटना के शोक में डूबे हुए थे।

"साले तूने कहा कि मैंने तेरा वक़्त बर्बाद किया है और तूने मेरा मकसद बर्बाद कर दिया। इनकी ज़िन्दगी बच जाती अगर तू पता लगा लिया होता तो! &%^%@" चीखते हुए अरुण उस शख्स पर चढ़ गया था, जिसने उसे वक़्त बर्बाद करने वाली बात कही थी। अरुण की इस हरकत से वह बुरी तरह बौखला गया, वह भी अब तक असमंजस में था कि आखिर यह हो कैसे गया। अरुण का हाथ उसके गले पर कस गया, उसकी साँसे उखड़ने लगी थीं।

"देखिये मिस्टर अरुण! जो हुआ उसका हमें भी अफसोस है पर सच यही है हमने कोई एक्सप्लोसिव ट्रेस नही किया, यहां तक कि हमें उनकी बॉडी में फीड करने का कोई रास्ता भी नही मिला।" दूसरे बम स्क्वायड मेम्बर ने कहा।

" साले! तेरे अफसोस करने से ये बच्चें वापिस आ जाएंगे?" अरुण उस शख्स को छोड़कर दूसरे मेंबर की ओर बढ़ा। उस मेंबर के हाथ पांव काँपने लगे, वह तेजी से अपनी गाड़ी की ओर बढ़ाया मगर वह एक कदम भी आगे न बढ़ सका, सभी हतप्रभ से अरुण को देख रहे थे। उसने अपने ज़ख्मी हाथ से ही उस युवक को जमीन से चार इंच ऊपर लटकाकर रखा था। मन तो आदित्य का भी कर रहा था कि वह उन दोनों को वहीं जान से मार दे पर उन्होंने सबके सामने हर तरह की मुक्कमल चेकिंग को किया था, अपनी ओर से उन्होंने कोई कसर नही छोड़ी थी। पर किसी को यह समझ नही आ रहा था कि सभी बच्चों के पेट में एक साथ ब्लास्ट कैसे हो गए? ये सवाल सभी के दिमाग में कौंध रहा था। तभी उस स्क्वायड मेंबर की छटपटाहट ने उसकी तंद्रा भंग की।

"उन्हें छोड़ दीजिए सर इसमें इनकी कोई गलती नहीं है।" आदित्य ने अरुण को समझाते हुए कहा, उसके कंधों पर भी उन्हीं बच्चों का खून लगा हुआ था।

"तो इसमें किसकी गलती है?" अरुण गुस्से से पागल हो चुका था।

"सभी लोग सर की कैद से इन्हें छुड़ाओ!" आदित्य ने अरुण को पकड़ते हुए कहा, मगर उसके हल्के से वार से छिटककर दूर जा गिरा। सभी लोग अरुण से चींटी की भांति चिपट गए,  उस शख्स ने अपने गले पर थोड़ी ढील महसूस की, जैसे ही उसका गला अरुण के पंजों से छूटा वह भागकर सीधे अपनी गाड़ी में बैठा। दूसरा मेंबर जो उसे छुड़ाने की कोशिश कर रहा था वह भी भागते हुए गाड़ी में बैठ गया।

"जल्दी जाओ, दुबारा यहां दिखाई मत देना। हम इन्हें अधिक देर तक नही रोक सकते।" आदित्य ने चीखते हुए कहा। मगर उन्हें अधिक मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ी, गुस्से से कांप रहा अरुण का शरीर शिथिल पड़ चुका था, ढेर सारा खून बह जाने के कारण या फिर इस घटना के आक्रोश से वह बेहोश हो चुका था। आदित्य ने उसके शरीर अपनी गाड़ी में डाला और तेजी से सरकारी हॉस्पिटल की ओर बढ़ा। बाकी के सभी अपने नाके पर लौटने लगे, कुछ पुलिसवाले रुककर उन बच्चों के अवशेष कलेक्ट कर रहे थे।

◆◆◆◆◆

सुबह!

"माँ दुर्गा का मंदिर यह प्रसिद्ध मंदिर ‘ज्वालाजी मंदिर’ के रूप में जाना जाता है, ज्वाला देवी मंदिर देवी दुर्गा के भक्तों के लिए विश्वास और भक्ति का केंद्र है। समुद्रतल से लगभग  2104 मीटर की ऊंचाई पर बिनोग पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित ज्वाला देवी मंदिर ओक और देवदार के पेड़ से घिरा हुआ है।

देवी दुर्गा भक्तों के लिए पूजा की जगह, ज्वाला देवी मंदिर इसी बेनोग पहाड़ में लगभग 2100 मीटर की ऊंचाई पर एक पुराना मंदिर है। मां दुर्गा के आशीर्वाद लेने के लिए आगंतुक अक्सर ज्वाला जी मंदिर जाते हैं। देवी दुर्गा की पुरानी पत्थर की मूर्ति ज्वाला जी मंदिर में है।" अनि और पियूषा अब भी  उसी टैक्सी ड्राइवर की टैक्सी पर सवार था। वह उन दोनों को ज्वाला जी मंदिर के बारे में बता रहा था। पियूषा बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी जबकि अनि का ध्यान कहीं और लगा हुआ था। ऊंचे पहाड़ियों पर बने उस सर्पीली सड़क पर चलते हुए वे  बेनोग पर्वत के पास आ चुके थे।

"ज्वालाजी मंदिर शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है। पूरे भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है, यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। कहा जाता है कि शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। फिर भी सती मोहवश बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गई।  यज्ञ स्थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुंड में कूद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्मांड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि ज्वालाजी में माता सती की जीभ गिरी थी।" ड्राइवर अब भी ज्वाला जी शक्तिपीठ के बारे में विस्तार से बता रहा था।

"ओ! तो आप ऐतिहात और भूलोक के साथ आयात्मक के भी बहुत बच्चे जानकार हैं!" अनि ने ऐसे कहा जैसे उसने कितनी ज्ञानवर्धक बात सुनी हो जबकि उसका ध्यान ड्राइवर की बातों पर बिल्कुल भी न था।

"अनि!" पियूषा उसके व्यवहार से खीझ गयी। " कम से कम शब्दों का उच्चारण तो सही करो, इतिहास, भूगोल और आध्यात्म होता है। ऐतिहात या भूलोक नही।"

"ये तो हमसे न होने वाला मिस प्याऊ जी! अब जिसे बुरा लगता है वो लगाता रहे!" अनि एक ओर कोने में दुबककर सीट पर बैठ गया।

"आप इसकी बातों को बुरा मत लगाइएगा अंकल! ओह सारी! अभी तक मैंने आपका नाम भी नही पूछा।" पियूषा ने अपना सिर पीटते हुए कहा। "प्लीज आप अपने बारे में बताइए न!"

"मेरा नाम शिवानन्द है बेटा! वैसे मैने भी इतिहास से बी.ए. कर रखा है परन्तु जब नौकरी न मिली तो इसी टैक्सी को ही अपना सहारा बना लिया। वैसे तो ये सारी पहाड़िया ही अपना घर हैं पर मैं यहीं पास के एक गांव में रहता हूँ।" ड्राइवर ने टैक्सी रोकते हुए अपना परिचय दिया। वे अब बेनोग पर्वत के पास आ चुके थे, यहां से उन दोनों को ही पैदल चलना था।

"थैंक्स अंकल! पेमेंट…" पियूषा ने शिवानंद को किराया देते हुए कहा। अनि अब भी टैक्सी की सीट पर दूसरे कोने में दुबक के बैठा हुआ था।

"तुम्हें यही बसेरा करना है क्या?" पियूषा ने उसके कान के पास मुँह लगाकर जोर से बोला।

"अरे नही! नही!" हड़बड़ाते हुए अनि उठा और पियूषा के पैरों में गिर गया।

"देवी माँ का बसेरा वहां हैं यहां नही!" पियूषा हँसते हुए पर्वत की ओर इशारा करते हुए बोली। उसकी बातें सुन मुँह बनाते हुए अनि झट से उठा और अपने कपड़े झाड़ने लगा।

"हे बजरंगबली!" बेनोग पर्वत को देखते हुए अनि ने हाथ फैलाकर कहा। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सीधे धरती से स्वर्ग जाने का रास्ता बना हुआ हो, पर्वत के शिखर पर श्वेत बादल मंडराते हुए नजर आ रहे थे।

"चलो जल्दी!" पियूषा ने उसका हाथ पकड़कर खींचा।

"चलते चलो राही, मंजिल एक दिन आएगा ही, भले तू बचे न बचे... " अनि किसी नर्तकी की भांति अपने दोनों हाथ लहराते हुए गाने लगा। सुबह हो चुकी थी, खूब ठंडी ताजी हवा उनके मन को प्रफुल्लित किये जा रही थी। आसपास के ऊँचे पेड़ और फैली हुई हरियाली देखकर दोनों का मन मुदित हुआ जा रहा था।

"यार सच में उत्तराखंड धरती पर स्वर्ग है!" पियूषा ने चहकते हुए कहा, इस वक़्त उसने नीले रंग की जीन्स के ऊपर श्वेत टॉप पहने हुए थी, चेहरे पर हल्का मेकअप था। इस गेटअप में भी वह कमाल की खूबसूरत लग रही थी, वहीं अनि अपने फॉर्मल ड्रेस में था, गहरा काला सिंपल पतलून और काले रंग का ही शर्ट, बाजुओं को कुहनी तक चढ़ाए हुए।

"धरती पर स्वर्ग का पता नही पर यहां से नीचे गिरे न तो सीधा स्वर्ग टपक जाएंगे!" अनि ने नीचे देखते हुए कहा, उसके चेहरे पर डर के भाव उमड़ आये।

"क्या यार! बस एक बार मजे लिए हैं मैंने तेरे और तू कभी भी मौका नही छोड़ता! इस बार अंकल जी को बोलूंगी की तेरा बियाह करा दें, अब जो आएगी वही सुधारेगी तुम्हें!" पियूषा ने धमकाने के स्वर में कहा।

"ऐसा अनर्थ न करना प्याऊ जी! अगर ऐसा हुआ तो हम चुल्लूभर पानी को पीकर मेरा मतलब चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाएंगे। इस बालब्रह्मचारी पर कुछ तो दया करो।" अनि रुंवासे स्वर में कहा। यह सुनकर पियूषा खिलखिलाकर हंस पड़ी।

"देखो अब अधिक दूर नही है, थोड़ी देर तो प्रकृति के प्रेम में स्वयं को भुलाकर देखो!"

"जो आज्ञा! पर हमसे भूलने भुलाने वाला काम नही होगा।" कहते हुए अनि किसी अबोध बालक की भांति उसके पीछे पीछे चलने लगा। थोड़ी ही देर में दोनों मंदिर के पास थे, मंदिर की दीवारें बहुत ही पुरानी प्रतीत हो रहीं थीं मगर यहां उन्हें किसी दैवीय आनन्द की अनुभूति हुई। दोनों ने माता के समक्ष अपने मत्था टेके और वहां के परिवेश में खो गए।

"अद्भुत! अगर ये स्वर्ग नही तो क्या है!" पियूषा दोनों हाथ फैलाकर उछलते हुए बोली। दोनों की सारी थकान काफूर हो चुकी थी, दोनों, शरीर में अद्भुत स्फूर्ति अनुभव कर रहे थे।

"क्या? हम स्वर्ग आ गए पर इंद्रदेव कहाँ हैं?" अनि चारों ओर गौर से देखते हुए बोला।

"स्वर्ग मतलब कल्पना से भी सुंदर स्थान होता है मूरख!" पियूषा फिर झल्लायी, पर उसे पता था कि अनि अपने उटपटांग हरकतों से बाज नही आएगा इसलिए उसने इस समय उसपर ज्यादा ध्यान न देना ही उचित समझा।

खूब घना जंगल, चारों ओर हरियाली लहलहा रही थी, वहां से यमुनोत्री और यमुना जी का दर्शन भी सुलभ था। माता के शरण में आकर मानो दैवीय आनन्द आ गया हो, जहां तक नजर जाए वहां सिर्फ और सिर्फ हरियाली ही फैली हुई थी।

"बहुत खुशबूरत नजारा है!" अनि ने तारीफ करते हुए कहा।

"कोई हर समय मजाक कैसे करते रह सकता है?" पियूषा आज पहली बार अनि के फालतू जोक्स से बोर फील कर रही थी।

"जैसे मैं करता हूँ! मुँह से।" अनि ने हँसते हुए कहा। पियूषा को जैसे पहले से पता था यही उत्तर होगा, वह भी खीखी कर हँस दी।

दोनों काफी देर तक इस सुंदर स्थल में विचरते रहे, इसके सौंदर्य में खोते रहे, सूरज सिर पर आ चुका था मगर गर्मी का कोई एहसास तक न था। पियूषा ने यादगार के लिए खूब सारी पिक्स लीं।

"सूरज नाना सिर पे चढ़ गए हैं! हम नीचे कब उतरेंगे? जब चंदा मामू आकर सिर पे भांगड़ा करने लगेंगे!" अनि ने पियूषा से मुँह बनाकर कहा, तब जाकर पियूषा को ध्यान आया कि दोपहर होने वाली थी। दोनों जल्दी से जल्दी चारों ओर घूमकर नीचे उतरने लगे, पर मन तो दोनों का कर रहा था कि यहीं ठहर जाएं, हमेशा हमेशा के लिए। पर इससे कुछ होगा नही इसीलिए दोनों ने इस बारे में एक दूसरे से कुछ नहीं कहा।

"अब हम कहाँ जाएंगे प्याऊ जी!" अनि ने नीचे उतरते हुए फोन चेक किया पर यहां नेटवर्क उपलब्ध नही था।

"पहले तो किसी होटल जाकर आराम करना है फिर देखेंगे कहा जाना है।" पियूषा ने बिना कुछ सोचे जवाब दिया।

"ओके!" अनि ने कहा। थोड़ी ही देर में दोनों नीचे उतर आए थे, पहाड़ को देखकर अनि की आँखे फटी रह गयी थी जैसे उसे यकीन न हो रहा हो कि वेब अभी अभी इस पहाड़ से उतरा है। थोड़ी देर और चलने के बाद दोनों मैन रोड पर आ गए, अनि ने टैक्सी ड्राइवर को कॉल किया पर उसका कॉल बिजी शो हो रहा था, इसलिए वे दोनों दूसरी टैक्सी से जाने की सोचें।

"कहाँ जाना है!" टैक्सी का ड्राइवर एक युवक था, उसने पूछा।

"मसूरी!" इससे पहले अनि कुछ कहता, पियूषा ने जवाब दिया। दोनों फटाक से टैक्सी में घुस गए, अनि अब बुरी तरह थक चुका था इसलिए टैक्सी पर बैठते ही उसे नींद आने लगी।

■■■

"लो साहब हम मसूरी आ गए!" ड्राइवर ने अनि को पुकारा।

"ये ऐसे नही जागेगा!" कहते हुए पियूषा अनि को जगाया, अनि हड़बड़ाते हुए उठा पर इस बार उसे ख्याल आया गया कि वो टैक्सी में है इसलिये इस बार सिर टैक्सी की छत से टकराते टकराते बच गया।

"भाई! मैन मार्किट ले चल न यार, यहां बीच सड़क पर हम लावारिसों की खोज खबर कौन लेगा।" अनि ने दुःखी स्वर में कहा। युवक उसके इस तरह बोलने से झेंप गया उसने गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ाया।  टैक्सी बस चार कदम आगे चली थी कि अनि को टैक्सी के बैक मिरर व्यू में एक ट्रक नजर आया। उसे यह ट्रक संदिग्ध लग रहा था, उसके मन में उठते विचारों ने हिलोरें लेना आरंभ कर दिया।

"यही रोक देना भाई!" अनि ने कहा, ड्राइवर समझ नही पाया कि आखिर यह लड़का चाहता क्या है! कभी कहता है चलो कभी यहीं रुक जाओ। "पीयू तुम किसी होटल में रूम ले लो, मुझे एक काम याद आ गया है। जरा अर्जेंट है! रूम बुक करने के बाद लोकेशन भेज देना मैं आ जाऊंगा।" कहते हुए अनि तेजी से टैक्सी से निकला और उसके विपरीत दिशा में भागने लगा।

"अजीब लड़का है ये! कभी समझ क्यों नही पाती मैं इसे!" पियूषा ने झुंझलाहट में कहा।

"क्या करूँ मैम!" ड्राइवर ने पूछा।

"चलो!" पियूषा के कहते ही ड्राइवर ने टैक्सी आगे बढ़ा दिया।

क्रमशः….


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5 Comments

Rohan Nanda

15-Dec-2021 09:18 PM

अजीब ही लड़का है ये.... उफ्फ समझ से परे

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🤫

10-Dec-2021 06:43 PM

इंट्रेस्टिंग कहानी है आपकी ये...

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Hayati ansari

29-Nov-2021 09:07 AM

Good

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